
जयपुर।
रामगंज थाने में रविवार को एक ऐसा दृश्य सामने आया जिसने सत्ता और सिस्टम के संतुलन पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। कांवड़ यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था और क्षेत्र में एक छेड़छाड़ के आरोपी की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पहुंचे विधायक बालमुकुंदाचार्य जब थाने पहुंचे तो उन्होंने न सिर्फ बात की, बल्कि थानेदार की कुर्सी पर भी बैठ गए।
यह दृश्य कैमरे में कैद हुआ और सोशल मीडिया पर वायरल होते ही सवाल उठने लगे—क्या अब थानों की बागडोर भी नेताओं के हाथ में जा रही है?
🔴 कुर्सी छोड़ी तो क्या व्यवस्था भी छोड़ दी?
गौर करने वाली बात यह है कि थाना प्रभारी ने खुद अपनी कुर्सी विधायक को दी, और थाने में मौजूद अन्य अधिकारी भी मूक दर्शक बने रहे। कुछ देर तक बातचीत चली और विधायक वहां से चले गए, लेकिन कुर्सी पर बैठने का मामला वहीं ठहरने वाला नहीं था।
कानूनी जानकारों का कहना है कि कोई भी सरकारी अधिकारी अपनी अधिकृत कुर्सी तब तक नहीं छोड़ सकता जब तक उससे उच्च पदस्थ अधिकारी ऐसा आदेश न दे।
एक कानूनी जानकार ने कहा,> “अगर थानेदार ने राजनीतिक दबाव में आकर अपनी कुर्सी छोड़ी है, तो यह एक प्रकार से पूरे थाने की गरिमा को गिराने जैसा है।”
विधायक बालमुकुंदाचार्य ने कहा:
> “मुझे जहाँ बैठाया गया, मैं वहाँ बैठ गया।”
इस पर सवाल उठ रहे हैं—क्या विधायक को खुद ये समझना नहीं चाहिए था कि वह थाने के प्रमुख की कुर्सी है? क्या विवेक अब सिर्फ जनता से अपेक्षित है, जनप्रतिनिधियों से नहीं?
अगर किसी भी व्यक्ति के कहने पर विधायक कहीं भी बैठ जाते हैं, तो क्या यह उनके निर्णय की परिपक्वता पर प्रश्नचिह्न नहीं है?
🔵 कांग्रेस ने उठाई आपत्ति
इस घटनाक्रम को लेकर कांग्रेस विधायक रफीक खान ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि यह
> “प्रशासनिक मर्यादा का उल्लंघन है और भाजपा को इस पर जवाब देना होगा। थाने में ऐसा दृश्य तंत्र को झुकाने की राजनीति का उदाहरण है।”
फोटो वायरल होने के बाद मामला तूल पकड़ चुका है। अब सवाल सिर्फ एक कुर्सी का नहीं, बल्कि तंत्र, विवेक और लोकतांत्रिक आचरण का बन गया है।
क्या अब कानून भी राजनीतिक हावभाव पर कुर्सी छोड़ देगा?
नोट: रामगंज थाने की संबंधित फोटो हमारे पास सुरक्षित है। आवश्यकतानुसार प्रस्तुत की जा सकती है।