“राजनीति ने छीन ली नौकरी, बेरोजगारी ने छीन ली ज़िंदगी – युवा मित्रों की मौत पर खामोश सरकार!”

जयपुर।
राजस्थान में भाजपा सरकार के गठन के बाद कैबिनेट की पहली बैठक में लिया गया एक बड़ा फैसला अब सवालों के घेरे में है। पिछली कांग्रेस सरकार में नियुक्त किए गए 5,000 ‘राजीव गांधी युवा मित्रों’ को एक झटके में नौकरी से हटा दिया गया। सरकार का तर्क था कि ये सभी कार्यकर्ता कांग्रेस की नीतियों और योजनाओं से जुड़े हुए थे, इसलिए उन्हें कार्यमुक्त करना जरूरी था।
लेकिन इस फैसले के पीछे की राजनीति ने हजारों परिवारों की कमर तोड़ दी है।
राजीव गांधी युवा मित्रों का कहना है कि वे किसी भी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता नहीं थे, बल्कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का काम कर रहे थे।
“हम न कांग्रेस के हैं, न भाजपा के। हम तो सरकार के योजनाओं को गांव-गांव, ढाणी-ढाणी तक ले जाते थे। आज भी मोदी सरकार की योजनाओं को ले जाने के लिए तैयार हैं, पर सरकार ने हमें सिर्फ ‘राजीव गांधी’ नाम के कारण बेरोजगार कर दिया।” — ऐसा कहना है एक आंदोलनरत युवा मित्र का।
18 महीने से ये युवा लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन अब तक सरकार की ओर से कोई सुनवाई नहीं हुई। इन 18 महीनों में 6 युवा मित्रों की मौत हो चुकी है। पर न सरकार ने संवेदना जताई, न कोई जांच करवाई, न पुनर्नियुक्ति पर विचार किया।
प्रश्न यह है कि — 👉 क्या ये युवा अब किसी राजनीतिक पार्टी के वोट नहीं रहे?
👉 क्या इनकी कोई नागरिक पहचान नहीं है?
👉 क्या बेरोजगारी से हुई मौतों का कोई जवाबदेह नहीं?
भाजपा एक ओर युवाओं को रोजगार देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर इन 5,000 परिवारों से रोज़ी-रोटी छीनने जैसा क्रूर कदम उठाया गया। आंदोलनकारी पूछते हैं —
“हम किस गुनाह की सजा भुगत रहे हैं? क्या ये न्याय है? क्या यही है सुशासन?”
राजनीति ने नौकरी छीनी और बेरोजगारी ने ज़िंदगी। अब सवाल सिर्फ इतना है — 6 मौतों का जिम्मेदार कौन है?