
दिल की गहराइयों से एक ड्राइवर की मन की बात
नमस्कार दोस्तो,
ये मैं हूं… अरे आपने मुझे पहचाना नहीं? शायद आपको ध्यान नहीं है — मैं याद दिलाता हूं। एक बार मैं आपको अपनी टैक्सी में 8 दिनों के लिए घुमाने ले गया था। हम उत्तराखंड गए थे, हिमाचल भी। याद आया ना? हां, अब याद आया — “आप तो वो ड्राइवर हैं ना!”
जी हां, देखा आपने… आप लोगों ने मेरी पहचान सिर्फ एक ड्राइवर के रूप में की है। और सच कहूं तो मैं इस काम से बहुत खुश हूं। मैं अपने परिवार को इसी काम से पालता हूं, बच्चों की पढ़ाई भी इसी कमाई से चलती है। और जब भी मैं अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठता हूं, तो गर्व महसूस करता हूं — क्योंकि मेरी गाड़ी के अलावा भी कई लोग सवारी का और परिवार मेरा इंतज़ार कर रहे होते हैं।
कभी बच्चों की जन्मदिन पार्टी से दूर,
कभी बीमार माँ के सिर पर हाथ रखने को मजबूर,
फिर भी मुस्कराते हुए गाड़ी की चाबी घुमाता हूं —
क्योंकि मैं ड्राइवर हूं, मैं थकता नहीं, झुकता नहीं।
मैं जब गाड़ी स्टार्ट करता हूं, तो सिर्फ इंजन नहीं चलता — मेरी ज़िम्मेदारी, मेरी सावधानी, और कई ज़िंदगियां उस गाड़ी में चलती हैं। मैं एक मंज़िल से दूसरी मंज़िल तक का सफर सिर्फ किमी में नहीं मापता, उसमें यात्रियों की उम्मीदें, घरवालों की दुआएं और मेरी खुद की मेहनत जुड़ी होती है।
मुझे बस एक ही दुख है — कि मुझे मेरे काम के हिसाब से वो सुविधाएं नहीं मिलतीं, जिनका मैं हकदार हूं। एक ड्राइवर भी इस देश का सच्चा सिपाही होता है। जैसे फौज बॉर्डर पर होती है, वैसे ही हम भी तो सड़कों पर होते हैं — चौकस, सजग, सतर्क।
आज मैं एक कंपनी में गाड़ी चलाता हूं। कंपनी पैसा कमाती है, मैं सिर्फ पेट पालता हूं। हक ज्यादा का है, मगर मिलता बहुत कम है। लेकिन मुझे इस बात से शिकायत नहीं है, मैं मेहनत से पीछे नहीं हटता।
पर हां, मेरी एक तकलीफ है — जो अगर मैं किसी आम इंसान को बता दूं, तो शायद उसकी आंखों में भी पानी आ जाए। क्योंकि एक ड्राइवर मौत को अपने हाथ में लेकर सड़कों पर चलता है। हादसा कब हो जाए, किस मोड़ पर ज़िंदगी बदल जाए, कोई नहीं जानता। और फिर हमारे शरीर के हिस्से उन भारतीय सड़कों पर ऐसे चिपक जाते हैं जैसे मिठाई पर चांदी का वर्क।
चलिए कोई बात नहीं, ये हमारे काम का हिस्सा है।
हमने कई लोगों को रोडपति से करोड़पति बना दिया — पर हम आज भी रोडपति ही हैं। क्योंकि हमारी मेहनत का फल हमें नहीं मिलता। आज हम उन कंपनियों की गाड़ी चला रहे हैं जिनकी अपनी कोई गाड़ी ही नहीं है। हम अपनी गाड़ी से दूसरों को कमा कर दे रहे हैं।
अगर हम बदले में उन कंपनियों से कुछ छोटी-सी सहूलियत मांग रहे हैं — तो क्या हम गलत हैं? नहीं ना! हम समंदर से सिर्फ एक लोटा पानी ही तो मांग रहे हैं… पर देखिए, हमारी आवाज़ कोई सुनता ही नहीं। क्योंकि हम सिर्फ एक “ड्राइवर” हैं।
मैं आज इस लेख के माध्यम से सिर्फ एक स्पोर्ट मांग रहा हूं — कि मुझे मेरे हक की लड़ाई लड़ने दिया जाए, मेरा सहयोग किया जाए। क्योंकि मैं उस हर जिंदगी से जुड़ा हूं जिसने कभी ना कभी कहा हो —
“सुनो ड्राइवर…”