“शेखावाटी में सियासी हलचल तेज: भाजपा के लिए जाट नेता अब विकल्प नहीं, मजबूरी बनते जा रहे है”

राजनीतिक विश्लेषण
जयपुर।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद राजस्थान की राजनीति में गर्माहट तेज हो गई है। खासकर जाट समाज और शेखावाटी क्षेत्र में इस घटनाक्रम के बाद सियासी समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भाजपा को घेरते हुए इसे जाटों के साथ “यूज एंड थ्रो” की नीति बताया है।
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सीधे भाजपा पर निशाना साधा और कहा कि “जिस समाज ने सबसे ज्यादा साथ दिया, आज उसी को दरकिनार किया जा रहा है।”
धनखड़ के इस्तीफे के बाद बड़ा खालीपन
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब प्रदेश और केंद्र, दोनों स्तरों पर कोई जाट नेता प्रमुख पद पर मौजूद नहीं है। ऐसे में भाजपा के सामने चुनौती है कि वह कैसे जाटों को फिर से अपने पक्ष में करे।
विशेषकर शेखावाटी जैसे क्षेत्र में, जहाँ जाट वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं, पार्टी को अब एक जमीनी और प्रभावशाली जाट चेहरा तलाशना होगा।
शेखावाटी कभी भाजपा का गढ़ नहीं रहा
यह कहना गलत होगा कि शेखावाटी भाजपा का परंपरागत गढ़ रहा है।
असल में, भाजपा यहां कभी भी कोई बड़ा जाट चेहरा खड़ा नहीं कर पाई। और जिन लोगों को आगे बढ़ाया गया, वे सिर्फ सत्ता के साथ रहकर लाभ उठाने वाले माने गए।
यही वजह रही कि भाजपा कभी भी गोविंद सिंह डोटासरा जैसे जाट नेता को टक्कर देने वाला चेहरा खड़ा नहीं कर पाई।
फिलहाल 7 सीटें, लेकिन पकड़ कमजोर
शेखावाटी की 21 विधानसभा सीटों में से भाजपा फिलहाल सिर्फ 7 पर ही काबिज है।
जाट बहुल इलाकों में पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिरता जा रहा है। संगठन के अंदर यह चिंता साफ झलक रही है कि अगर जल्द कोई रणनीतिक चेहरा नहीं उभरा, तो आने वाले चुनावों में यह गिरावट और गहरी हो सकती है।
नागौर में दो फाड़: मिर्धा बनाम कोर भाजपा
नागौर भाजपा के लिए एक और बड़ी चुनौती बना हुआ है।
यहां पार्टी वर्षों से हनुमान बेनीवाल को रोकने के लिए ज्योति मिर्धा पर दांव खेलती रही, लेकिन वे न तो बेनीवाल को टक्कर दे पाईं, न ही कोर कार्यकर्ताओं का भरोसा जीत सकीं।
वर्तमान में भाजपा नागौर में दो भागों में बंटी हुई नजर आती है—एक तरफ मिर्धा की भाजपा, दूसरी ओर पुराने और जमीनी कार्यकर्ताओं की भाजपा।
यह विभाजन न केवल संगठनात्मक कमजोरी को दर्शाता है, बल्कि जनता में भ्रम की स्थिति भी पैदा करता है।
सुभाष महरिया पर भरोसा नहीं कर पा रही पार्टी
शेखावाटी के चर्चित नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया भी पार्टी की पसोपेश में बने हुए हैं।
भाजपा नेतृत्व उन पर इसलिए भरोसा नहीं कर पा रहा क्योंकि उनकी पहचान एक ऐसे नेता की बन चुकी है जो हमेशा सत्ता के साथ रहते हैं, न कि संगठन या समाज के साथ।
संतोष अहलावत की सक्रियता में गिरावट
पूर्व सांसद संतोष अहलावत, जो शेखावाटी की पहली महिला सांसद रहीं, वर्तमान में भाजपा की प्रदेश महामंत्री हैं, लेकिन अब सक्रिय राजनीति में उनकी भागीदारी कम होती जा रही है।
स्थानीय संगठन से दूरी और जनता से सीधा जुड़ाव ना होने के कारण उनकी पकड़ भी कमजोर हो रही है।
क्या जानू बनेंगे अगला चेहरा….?
भाजपा में कृष्ण कुमार जानू को लेकर भी चर्चाएं तेज हैं।
वे संगठन मंत्री, युवा मोर्चा जिला अध्यक्ष, मंडावा से प्रत्याशी और वर्तमान में भाजपा प्रवक्ता के साथ-साथ राजस्थान जाट महासभा के सचिव हैं।
उनका संगठन में लंबा अनुभव और समाज से जुड़ाव उन्हें एक उभरता हुआ विकल्प बनाता है।
झावर सिंह खर्रा और सुमेधानंद भी चर्चा में
इसके अलावा भाजपा के संभावित जाट चेहरों में झावर सिंह खर्रा और पूर्व सांसद सुमेधानंद का नाम भी लिया जा रहा है।
दोनों का पार्टी से पुराना जुड़ाव है और क्षेत्रीय पकड़ भी मजबूत मानी जाती है।
देवेंद्र झाझड़िया पर दांव फेल, राहुल कस्वा को नकारा
चुरू लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पैरा ओलंपियन देवेंद्र झाझड़िया को मैदान में उतारा, लेकिन यह दांव उल्टा पड़ गया।
स्थानीय कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि पार्टी राहुल कस्वा जैसे जमीनी नेता को टिकट देती, तो परिणाम बिल्कुल अलग होता।
इस गलत फैसले की कीमत पार्टी को 11 सीटों के नुकसान के रूप में चुकानी पड़ी।
अब बिना जाटों को साधे आगे नहीं बढ़ सकती भाजपा
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ एक संवैधानिक घटना नहीं, बल्कि भाजपा की जाट नीति की असफलता का प्रतीक बन गया है।
अब पार्टी को समझना होगा कि राजस्थान की राजनीति में शेखावाटी के जाट नेता को आगे लाना अब मजबूरी नहीं, बल्कि रणनीतिक ज़रूरत है।
अगर भाजपा को गोविंद सिंह डोटासरा जैसे नेताओं से मुकाबला करना है तो उसे जमीन से जुड़ा, तेज-तर्रार और जाट समाज में विश्वास रखने वाला नया चेहरा खड़ा करना ही होगा।
वरना, आने वाले चुनाव सिर्फ आंकड़ों से नहीं, बल्कि समाज के असंतोष से भी तय होंगे।
नोट – यह खबर अपडेट भारत 24×7 के पास सूत्रों के हवाले से लिखी गई है ।