
धौलपुर | ओम प्रकाश वर्मा की खास खबर /
सैंपऊ उपखंड के नुनहेरा पंचायत क्षेत्र के ढाढ़ियों गांव में लोग आज भी रोज़ जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं — और वो भी ट्यूब से बंधी एक चारपाई के सहारे। गांव के बच्चों को स्कूल जाना हो, बीमार को अस्पताल ले जाना हो या किसी को ज़रूरी सामान लाना हो — सबको पार्वती नदी पार करनी पड़ती है, वो भी एक अस्थायी खटोले पर सवार होकर।
सड़क मार्ग से दूरी ज्यादा है, लेकिन खटोलों के सहारे नदी पार करना हर रोज़ की मजबूरी बन चुका है। आरी, मढ़ैया, भूरा का पुरा, बघेलों का पुरा, महंत का अड्डा और पंछी का पुरा जैसे गांवों के लोग वर्षों से इसी तरह जान हथेली पर रखकर आवागमन कर रहे हैं।
न पुल, न रपट – सिर्फ वादे
ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों से प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते-लगाते अब उम्मीद भी टूट रही है। “नेता चुनाव के समय वादों की बारिश करते हैं, लेकिन हमारी नाव तक को देखने कोई नहीं आता,” — यह कहना है ग्रामीण कमल सिंह का।
खटोला अब ‘लाइफलाइन’, पर खतरा बना हर सफर
लोग खटोले को नदी पार करने के बाद पेड़ से बांध देते हैं ताकि कोई और उसे चुरा न ले। कुछ परिवारों ने तो अपने खटोले खुद तैयार कर लिए हैं। यह ‘जुगाड़’ अब उनका सहारा भी है और सबसे बड़ा खतरा भी।
प्रशासन बेखबर या लापरवाह?
तहसीलदार नाहर सिंह ने केवल इतना कहा कि “बच्चों और ग्रामीणों को नदी से रास्ता पार करने से रोका जाएगा और जांच कराई जाएगी।” लेकिन सवाल यह है कि जब रोज़ जान जोखिम में है, तब रोक नहीं, समाधान की जरूरत है।
ग्रामीणों की चेतावनी
गांव वालों ने साफ कहा है — अगर जल्द पुल या रपट नहीं बना तो ये खामोशी किसी बड़े हादसे की जिम्मेदार होगी। “फिर सिस्टम मुआवजा देगा, लेकिन जिंदगी लौटाकर कौन लाएगा?” ग्रामीणों की यह बात प्रशासन को अब सुननी ही चाहिए।