
जयपुर।
सरकार किसी भी पार्टी की हो – सत्ता में आने के बाद हर बार सबसे पहले अगर कोई छला जाता है तो वो होता है युवा। वो युवा जो हर चुनाव में इस उम्मीद में वोट देता है कि शायद इस बार उसकी नौकरी पक्की हो जाएगी, उसे लगता है कि अब उसकी सरकार आ गई है। लेकिन उसे यह नहीं पता होता कि असल में वही सरकार, वही संगठन और वही पार्टी उसकी भावनाओं को सबसे ज्यादा इस्तेमाल करती है।
अब सोचिए, जब दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष ही अपनी कही बात से मुकर जाए, तो फिर आम कार्यकर्ता और जनता का क्या हश्र होगा? झूठ तो सियासत में बहुत बोले जाते हैं, लेकिन इतनी सफाई से और इतनी तेजी से पलट जाना – यह “क्वालिटी” शायद सिर्फ राजस्थान भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ के पास है।
याद कीजिए 4 अगस्त 2024, जब मदन राठौड़ ने भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद की शपथ ली थी। मंच पर मौजूद थीं पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा की दिग्गज नेता वसुंधरा राजे। उन्होंने उसी दिन एक संकेतों में गहरी बात कही थी –
“राजनीति में पद, मद और कद – तीनों आते हैं, लेकिन पद और मद स्थायी नहीं होते, कद ही स्थायी होता है। पद का मद चढ़ जाए तो कद घट जाता है।”
उस दिन लगा था कि भाजपा आत्मचिंतन कर रही है। उन्होंने बिना नाम लिए कई नेताओं को आइना दिखाया, और साथ ही राठौड़ की तारीफ करते हुए कहा कि “सेवाभावी, सरल और ईमानदार नेता” को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर पार्टी ने अच्छा निर्णय लिया है।
लेकिन आज जब हम पीछे देखते हैं तो पाते हैं कि वही राठौड़ अब युवाओं के सवालों से मुंह मोड़ते नज़र आ रहे हैं।
RAS अभ्यर्थियों के मुद्दे पर कई बार 40 मंत्री-विधायक, दो उपमुख्यमंत्री और खुद प्रदेश अध्यक्ष ने वादे किए, लेकिन वो वादे सिर्फ मंच तक सीमित रहे। और अब नया विवाद तब खड़ा हुआ जब सरकार ने मात्र 6 दिन पहले RAS मुख्य परीक्षा की तिथियाँ – 17 और 18 जून – घोषित कर दीं।
छात्रों की एक ही माँग थी — परीक्षा की तिथि आगे बढ़ाई जाए, ताकि वे मानसिक रूप से तैयार हो सकें, क्योंकि वे आंदोलनरत हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार के पास अधिकार जरूर है, लेकिन कुछ अधिकारों पर भी संवैधानिक, प्रशासनिक और व्यावहारिक अंकुश होता है। सब कुछ एकतरफा नहीं होता।
यहाँ समझने वाली बात ये है कि —
सरकार और संगठन एक जैसे नहीं होते।
सरकार वह होती है, जिसे जनता चुनकर भेजती है और जिसकी जवाबदेही आम जन के प्रति होती है। जबकि संगठन पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाने वाला समूह होता है, जिसका दृष्टिकोण वैचारिक और रणनीतिक होता है।
इसीलिए इस पूरे प्रकरण के लिए सरकार को दोष देना पूरी तरह न्यायोचित नहीं है।
सरकार युवाओं के लिए बेहतर काम कर रही है, लेकिन सत्ता और संगठन में तालमेल की भारी कमी नज़र आ रही है।
आज जब भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि “प्रदेशाध्यक्ष ने युवाओं की बात ऊपर तक पहुंचा दी है”, तो कुछ देर बाद ही वायरल हुई टेलीफोनिक बातचीत में प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ अपनी ही बात से पलटते सुनाई दिए। इससे साफ है कि संगठन के भीतर समन्वय और पारदर्शिता की गंभीर कमी है।
तीन बड़े सबूत हैं जो यह साबित करने को काफी हैं कि भाजपा संगठन के भीतर कुछ सही नहीं है:
- प्रदेशाध्यक्ष की पहले कही और अब मुकरती बातों का वीडियो प्रमाण।
- राजेन्द्र राठौड़ का गोलमोल जवाब, जो पारदर्शिता से बचता है।
- RAS अभ्यर्थियों की लगातार चलती नाराजगी और परीक्षा की जल्दबाज़ी।
अब सवाल जनता का है —
क्या राजनीति में पद का मद किसी के कद से बड़ा हो गया है?
और जवाब वही पुराना है —
जब संगठन जनता के बजाय खुद को प्राथमिकता देता है, तो जनता को सिर्फ तारीखें मिलती हैं, भरोसा नहीं।