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पानी की मार: सांभर में पलायन, बिकने लगे आशियाने ।

करीब 200 घरों पर "पलायन" के पोस्टर लग चुके हैं।

रिपोर्ट: गोविंद सैन | जयपुर ग्रामीण ।

 

राजधानी जयपुर से महज 80 किमी दूर सांभर झील कस्बा पानी की भीषण किल्लत से जूझ रहा है। उपखंड मुख्यालय होने के बावजूद वार्ड 22 और 23 के करीब 200 घरों पर “पलायन” के पोस्टर लग चुके हैं।

हर नल सूखा, हर गली प्यास से कराहती—चार-छह घड़े पानी के लिए तीन दिन तक इंतज़ार। ऊंचाई पर बसे मोहल्लों में टैंकर तक नहीं पहुंच पाते, जिससे पानी के लिए दोगुना दाम चुकाना मजबूरी बन गया है।

250 साल पुरानी हवेली छोड़ने को मजबूर व्यवसायी, 4 साल पहले बनाया घर बेचने की सोच रहे युवा—सांभर में पानी अब जीवन से बड़ा मुद्दा बन चुका है।

घरों में पानी नहीं, लेकिन हर महीने बिल जरूर। सरकारी टंकी सालों से स्वीकृत, मगर निर्माण अधर में। पीएचईडी का तर्क: “मोहल्ले ऊंचाई पर हैं, सप्लाई नहीं पहुंचती”, जबकि स्थानीयों का आरोप: “पानी की नहीं, इच्छाशक्ति की कमी है।”

विधायक विद्याधर चौधरी सरकार पर सौतेले व्यवहार का आरोप लगा चुके हैं, जबकि पूर्व विधायक निर्मल कुमावत ने टंकी का टेंडर हो जाने का दावा किया है। अधिकारियों ने समाधान का भरोसा दिलाया, लेकिन फिलहाल हालात जस के तस हैं।

सांभर की तंग गलियों में अब सन्नाटा है—जहां कभी बच्चों की आवाजें थीं, वहां अब पानी के लिए गूंजता सन्नाटा और पलायन की दस्तक है।


 

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