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एक ट्रांसजेंडर की कहानी, जो समाज से नहीं — समाज के लिए लड़ रही है ।

हम भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की पूजा करते हैं, लेकिन उनके समान दिखने वाले जीवित लोगों को तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं ।

जयपुर 

समाज को झकझोर कर देने वाली एक अपील

जयपुर, 4 जून 2025 –
आज जब देश तरक्की की राह पर दौड़ रहा है, तकनीक और विकास के नए आयाम गढ़े जा रहे हैं, तब भी कुछ सवाल अब भी हमारे सामने खड़े हैं — क्या हम सच में एक समान समाज की ओर बढ़ रहे हैं? क्या हर तबके को वही सम्मान, वही अधिकार मिल रहे हैं, जो संविधान ने तय किए?

इन्हीं सवालों के बीच खड़ी हैं रोज़ी – एक पढ़ी-लिखी, साहसी और समाज के लिए समर्पित ट्रांसजेंडर । रोज़ी न केवल समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं, बल्कि वह राजनीति, सामाजिक सेवा और जन-जागरण के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। वह भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय कार्यकर्ता हैं और अपने समुदाय के अधिकारों के लिए निरंतर आवाज़ उठा रही हैं।

रोज़ी की कहानी एक प्रेरणा है, लेकिन साथ ही समाज के दोहरे मापदंडों पर सवाल भी खड़े करती है।
“हम भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की पूजा करते हैं, लेकिन उनके समान दिखने वाले जीवित लोगों को तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं,” रोज़ी कहती हैं।

एक संघर्ष जो सिर्फ जीविका का नहीं, पहचान का है

हालांकि सरकारें ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर कई योजनाएं चला रही हैं – शिक्षा, नौकरी और स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में – लेकिन रोज़ी मानती हैं कि असली चुनौती आज भी सामाजिक स्वीकृति की है।

“सरकारी नौकरी मिल जाए, सम्मान पत्र मिल जाए – ये काफी नहीं है। जब तक समाज हमें दिल से नहीं अपनाएगा, तब तक ये समानता अधूरी रहेगी।”

समाज से एक अपील

रोज़ी ने अपने हालिया संबोधन में कहा,
“मैं आपसे ताली नहीं, साथ मांग रही हूं। सिर्फ एक मौका दीजिए कि मैं भी आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकूं।”

उनकी ये अपील केवल ट्रांसजेंडर समाज की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की आवाज़ है जिसे समाज ने अलग समझा, पर जो दरअसल हम में से ही एक है।

क्या बदलेगा नजरिया?

रोज़ी की कहानी उन तमाम लोगों को सोचने पर मजबूर करती है जो आज भी ट्रांसजेंडर लोगों को हाशिए पर रखते हैं।
उनकी सफलता, संघर्ष और संवेदनाएं यह बताती हैं कि परिवर्तन कानून से नहीं, सोच से आता है।

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