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टीकाराम जूली का तंज: “मुख्यमंत्री आवास दिल्ली शिफ्ट कर लें, राजस्थान की जनता बेहाल” ।

जूली ने सरकार को "पर्ची वाली सरकार" करार देते हुए कहा कि जनहित के मुद्दों पर चर्चा करने का सरकार के पास समय नहीं है।

जयपुर

टीकाराम जूली का तंज: “मुख्यमंत्री आवास दिल्ली शिफ्ट कर लें, राजस्थान की जनता बेहाल” ।

जयपुर। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को अब मुख्यमंत्री आवास को दिल्ली शिफ्ट कर लेना चाहिए, क्योंकि वह राजस्थान को समय नहीं दे पा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश की जनता ने जिस सरकार को चुना, वह सरकार प्रदेश में न होकर दिल्ली में अपनी हाजिरी लगा रही है।

जूली ने सरकार को “पर्ची वाली सरकार” करार देते हुए कहा कि जनहित के मुद्दों पर चर्चा करने का सरकार के पास समय नहीं है। वहीं, जब विपक्ष सवाल करता है तो मुख्यमंत्री और उनके मंत्री गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ लेते हैं।

टीकाराम जूली ने कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के राजस्थान दौरे से पहले ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा एक बार फिर दिल्ली रवाना हो गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री फैसले लेने की स्थिति में नहीं हैं, और जब तक दिल्ली से “पर्ची” नहीं आती, तब तक वे कोई निर्णय नहीं ले पाते।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार को बने 1 वर्ष 6 महीने से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन यह हर मोर्चे पर विफल साबित हुई है। कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून नाम की कोई चीज नहीं बची है और माफिया राज फल-फूल रहा है।

जूली ने तंज कसते हुए कहा कि मुख्यमंत्री दिल्ली के दर्जनों दौरे कर चुके हैं, लेकिन आज तक प्रदेश के लिए चवन्नी तक नहीं ला पाए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि बजट की कोई कमी नहीं है, लेकिन पंचायतों को बजट नहीं मिल रहा, पेंशन अटकी पड़ी है और छात्रवृत्तियां भी समय पर जारी नहीं हो रही हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार में हर तरफ लूट-खसोट का माहौल है और जनता त्रस्त है। यदि सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए तो आमजन खुद इसका जवाब देगी।

राज्य में सरकार की गैरमौजूदगी पर सवाल उठाते हुए जूली ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह मुख्यमंत्री को राजस्थान की जिम्मेदारियों से मुक्त कर दे। उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री स्वयं मुख्यमंत्री को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने को कहें, तो शायद वह जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतर सकें और जिन सपनों के साथ उन्हें सत्ता सौंपी गई थी, वे पूरे हो सकें।

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