
जयपुर
“कागजों में कानून, जमीन पर माफिया” — राजस्थान में शासन या जंगलराज…? टीकाराम जुली , नेता प्रतिपक्ष
राजस्थान इन दिनों जिस दौर से गुजर रहा है, वह लोकतंत्र की नींव को झकझोरने वाला है। आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जो ये सवाल खड़ा कर रही हैं — क्या वाकई प्रदेश में कानून का राज है, या माफियाओं का?
ताज़ा मामला सवाईमाधोपुर से है, जहां अवैध खनन को रोकने पहुंची पुलिस टीम पर बजरी माफिया ने हमला कर दिया। खनन स्थल पर लाठी-भाठा की खुली जंग छिड़ गई, जिसमें पुलिसकर्मी जान बचाकर बनास नदी में कूदने को मजबूर हो गए। हमलावरों ने डिप्टी एसपी की प्राइवेट बोलेरो गाड़ी को आग के हवाले कर दिया। अफरा-तफरी में एक ट्रैक्टर ड्राइवर की भी मौत हो गई। यह घटना न सिर्फ प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि माफियाओं की बेखौफ ताकत को भी उजागर करती है।
कुछ ज्वलंत प्रश्न, जो हर राजस्थानवासी पूछ रहा है:
प्रदेश में अवैध खनन का कारोबार आखिर कब तक खुलेआम चलेगा? क्या सरकार की मौन सहमति है?
पुलिस प्रशासन, जो कानून व्यवस्था का रक्षक है, वह खुद ही माफियाओं के हमले का शिकार बन रहा है — क्यों?
क्या राजस्थान में शासन चल रहा है, या माफिया राज?
खनन माफियाओं को किसका संरक्षण प्राप्त है? क्या यह राजनीतिक मिलीभगत का नतीजा है?
अपराधियों द्वारा कानून को सरेआम चुनौती देना — और सरकार की चुप्पी — क्या ये प्रशासन की विफलता नहीं?
आखिरकार डीएसपी जिस प्राइवेट बोलेरो से मौके पर पहुँचे, वह किसकी है? क्या कोई बड़ा नाम इस मामले में छुपा है?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी से प्रदेश पूछना चाहता है:
क्या यह सब माफियाओं और सत्ता की मिलीभगत का परिणाम है, या फिर शासन चलाने वाले आज इतने कमजोर हो गए हैं कि अपराधी बेलगाम हो चुके हैं?
राज्य की जनता अब सिर्फ आश्वासन नहीं चाहती — उसे एक सशक्त और निष्पक्ष कार्रवाई की दरकार है। क्योंकि अगर पुलिस ही सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी किसके भरोसे जिए?